उत्तर प्रदेशप्रयागराज

कार्तिक पूर्णिमा पर हरिद्वार और प्रयागराज में लाखों श्रद्धालुओं ने लगाई डुबकी, जलाए जाएंगे पांच लाख दीये

कार्तिक पूर्णिमा पर हरिद्वार में हरकी पैड़ी और संगम नगरी प्रयागराज में आज लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं ने लगाई. आज कार्तिक माह का अंतिम स्नान पर्व है और इसके लिए दोनों ही तीर्थ स्थानों पर श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है. दूर-दूर से हजारों श्रद्धालु डुबकी लगाने के लिए हरिद्वार और प्रयागराज पहुंच रहे हैं. श्रद्धालु भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर भगवान कार्तिकेय से प्रार्थना करे हैं और स्वस्थ रहने की कामना कर रहे हैं. हरिद्वार लेकर प्रयागराज और काशी के घाटों में जगह नहीं हैं और ग्रह-नक्षत्रों का दुर्लभ संयोग बनने के कारण कार्तिक पूर्णिमा के स्नान का विशेष महत्व है.

प्रयागराज और हरिद्वार में पहुंचे श्रद्धालु स्नान और पूजा-अर्चना के साथ-साथ दान-पुण्य कर रहे हैं औऱ मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव और मां पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म हुआ था और आज ही दिन भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार का रूप धारण किया था. मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान और पूजा करने वाले को अक्षय पुण्य और स्वस्थ जीवन मिलता है. इसलिए आज संगम नगरी प्रयागराज में त्रिवेणी और धर्म की नगर हरिद्वार में स्नान करने वालों की भारी भीड़ उमड़ रही है.

संगम पर आज जलाए जाएंगे पांच लाख दीये

कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर आज प्रयागराज में संगम के तट पर पांच लाख दीये जलाए जाएंगे. क्योंकि आज देव दीपावली भी है. देव दीपावली का हिंदू धर्म में काफी महत्व है. जानकारी के मुताबिक प्रयागराज के सभी घाटों पर आज शाम देव दीपावली भी बड़ी धूमधाम से मनाई जाएगी और 5 लाख दीये जलाए जाएंगे. इसके साथ ही यमुना के किनारे स्थित बलवा घाट पर 31 हजार दीयों का दीपदान किया जाएगा.

आज मनाई जाएगी देव दिवाली

कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाई जाती है और मान्यता है कि इस दिन देवतादिवाली मनाने के लिए पृथ्वी पर आते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार त्रिपुर के वध से प्रसन्न होकर देवताओं ने काशी में पंचगंगा घाट पर दीपोत्सव का आयोजन किया था और इसकी मान्यता के अनुसार आज देव दीपावली मनाई जाती है. आज के ही दिन काशी राजा देवदास ने अपने राज्य में देवताओं को प्रतिबंधित कर दिया था. इसके बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने रुप बदलकर पंचगंगा घाट पर स्नान किया और पूजा अर्चना की. ये ये बात राजा देवदास को पता चली तो उन्होंने प्रतिबंध को समाप्त कर दिया और इससे खुश होकर देवताओं ने दिवाली मनाई.

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