Impact on Abraham Accord : इजराइल और हमास के बीच भयंकर स्थिति, अब ‘अब्राहम समझौते’ का क्या होगा ?
नई दिल्ली : हमास और इसके बाद इजराइल के जवाबी हमले में 2100 से ज्यादा लोग मारे गए हैं. इसके बाद ऐसी चर्चा है कि अरब और इजराइल के बीच सुधरते संबंधों पर ब्रेक लगना तय है. इसे अब्राहम समझौते के नाम से भी लोग जानते हैं. इस समझौते में मध्यस्थ की भूमिका अमेरिका ने निभाई थी.
अब्राहम नाम इस्लाम, ईसाई और यहूदी, तीनों ही धर्मों में पवित्रता के साथ लिया जाता है. इसका अर्थ होता है- समझौते की उम्मीद और सहयोग की भावना को बनाए रखना. समझौते का मुख्य मकसद अरब और इजराइल के बीच आर्थिक, राजनयिक और सांस्कृतिक स्तर पर संबंधों को सामान्य बनाना था.
इस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले देशों ने एक दूसरे के यहां दूतावास खोलने और राजदूतों की नियुक्ति पर सहमति जताई थी. ट्रेड, टेक्नोलॉजी, हेल्थकेयर और पर्यटन के क्षेत्र में आपसी सहयोग को बढ़ाने का संकल्प लिया गया था.
साथ ही आतंकवाद के खिलाफ कड़े कदम उठाने और इस मामले में एक दूसरे का सहयोग करने को लेकर भी प्रतिबद्धता जताई गई थी, ताकि क्षेत्रीय स्थितरता बरकरार रहे. खेल, शिक्षा और पर्यटन के जरिए लोगों के बीच आवाजाही को भी बढ़ावा देना था.
शुरुआत में यह समझौता इजराइल और संयुक्त अरब अमीरात के बीच 13 अगस्त 2020 को हुआ था. उसी साल 11 सितंबर को इन दोनों देशों ने समझौते पर हस्ताक्षर भी किए गए. तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस समझौते में बड़ी भूमिका निभाई थी.
वह खुद मौजूद थे.बाद में बहरीन और यूएई के विदेश मंत्रियों ने समझौते पर हस्ताक्षर किए. ट्रंप के दामाद जार्ड कुशनेर और उनके सहायक एवी बर्कोविज ने बड़ी भूमिका निभाई थी. इजराइल और मोरक्को के बीच दिसंबर 2020 में संबंधों को सामान्य बनाने को लेकर समझौता किया गया.
मोरक्को ने इसके बदले इजराइल को मान्यता देने का वचन दिया. पश्चिम सहारा में मोरक्को की संप्रभुता को अमेरिका ने स्वीकार कर लिया.
छह जनवरी 2021 को इजराइल और सूडान के बीच समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. अमेरिका के ट्रेजरी सेक्रेटरी स्टिवेन म्नूचिन इसके गवाह बने. इसके बदले में अमेरिका ने सूडान को ‘आतंकवाद के स्पॉंसर टैग’ से मुक्ति दे दी और उसे 1.2 बि. डॉलर की आर्थिक मदद भी प्रदान की, जिसे उसने विश्व बैंक से कर्ज ले रखा था, लेकिन चुकाने में असमर्थ था.
हमास के हमले के बाद यूएई ने चिंता प्रकट की है. यूएई ने तत्काल शांति की अपील की है. यूएई ने कहा कि किसी भी सूरत में नागरिकों को बचाया जाना चाहिए. उसने दोनों पक्षों से तनाव घटाने का आग्रह किया है. यूएई ने सीरिया के प्रेसिडेंट बशर अल असद से इस युद्ध में उलझने को नहीं कहा है.
यूएई ने कहा कि सीरिया की जमीन का उपयोग इजराइल पर हमले करने के लिए न हो, यह वह सुनिश्चित करे. बहरीन ने भी अब्राहम समझौते को लेकर शंका प्रकट की है.
ऐसे में विशेषज्ञ भी अब सशंकित हैं कि अब्राहम समझौते का क्या होगा. ईटीवी भारत से बात करते इराक में भारत के पूर्व राजदूत आर. दयाकर ने कहा कि अब्राहम समझौते के बाद जिन उम्मीदों को बल मिला था, उस पर पानी फिर गया है.
उन्होंने कहा कि इस हमले से फिलिस्तीन की समस्या फिर से दुनिया के केंद्र में आ गई. लोग इस पर चर्चा करने लगे हैं. सऊदी अरब ने इस्लामिक देशों की बैठक बुलाने का निर्णय लिया है. इस समस्या के किस तरह से निदान हो, हर कोई चिंतित है.
उन्होंने आगे कहा कि अब्राहम समझौते पर आगे तभी बढ़ा जा सकता है, जब वेस्ट बैंक में यहूदी सैटलमेंट पर कोई सार्थक फैसला होगा. इजराइली जेलों में बंद फिलिस्तीनियों पर कोई निर्णय हो और अल अस्का मस्जिद पर कोई विश्वसनीय गारंटी दी जाए.
अल अस्का मस्जिद यरूशलम में है. इसे मुस्लिम और यहूदी दोनों ही पवित्र भूमि मानते हैं. यहूदी इसे टेंपल माउंट के नाम से पुकारते हैं. पिछले महीने इजराइल ने यहां पर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी थी. अल अस्का मस्जिद से मौलवियों को बाहर कर दिया गया था.
50 साल से कम किसी भी फिलिस्तीनियों को यहां पर प्रवेश की इजाजत नहीं थी. यहूदियों के नए साल रॉश हशनाह पर यहूदियों के लिए एरिया क्लियर करा दिया गया. हाल के दिनों में इजराइल के राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री इतमार बेन ग्विर की अल अस्का मस्जिद परिसर में उपस्थिति बढ़ गई थी.
मस्जिद में इजराइलियों के दाखिले से हमास नाराज था. हमसा ने स्थिति को यथावत बनाए रखने को कहा था.अल अक्सा मस्जिद विवाद 1948 से ही चला आ रहा है. इस मस्जिद प्रांगण का कंट्रोल यरूशलम वक्फ के पास है. यह जॉर्डन सरकार के एक अंग के तौर पर काम करता है.
फिलिस्तीन की सरकार धार्मिक ऑथरिटी की नियुक्ति करती है, जिसे यरूशलम का ग्रैंड मुफ्ती कहा जाता है.
इस बीच हमास ने हमले के दौरान ही कई इजराइलियों को बंदी बना रखा है. चर्चा है कि जब भी दोनों पक्षों के बीच बातचीत होगी, हमास इजराइली जेलों में बंद 5200 फिलिस्तीनियों को छु़ड़ाने की शर्त रख सकता है.
इनमें 33 महिलाएं और 170 बच्चे भी शामिल हैं. हालांकि, कैदियों की अदला-बदली एक लंबी और जटिल प्रक्रिया होती है. 2006 में हमास ने इजराइल के गिलाद शालित की किडनैपिंग कर ली थी.
पांच साल के बाद उसे छोड़ा गया था. इसके बदले में इजराइल को 1000 फिलिस्तीनी कैदियों को छोड़ना पड़ा था. ऐसा कहा जाता है कि हमास के हमले से पहले वेस्ट बैंक में इजराइली सैटलर्स ने फिलिस्तीनियों पर हमले बढ़ा दिए थे. और खासकर तब से जब से नेतन्याहू की सरकार आई है, इन सैटलर्सों के हौंसले बढ़ गए थे.