
दुनिया भर में ईंधन की खपत को कोरोना वायरस और लॉकडाउन ने बहुत कम कर दिया है. वहीं तेल की स्टोरेज की ज़रूरत ने टैंकर भाड़े को रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचा दिया है. उद्योग के डेटा ऐसा ही दिखा रहे हैं. समुद्री तटों के किनारे स्टोरेज सुविधाएं लबालब हैं. वहीं सप्लाई चेन्स में कतार में लगा तेल अधिक मात्रा में है. तेल उत्पादक देश, कारोबारी और रिफाइनरियां इस उम्मीद में पानी में तैर रहे जहाजों में अधिक तेल भरे जा रही हैं कि भविष्य में भारी डिमांड की स्थिति से निपटा जा सकेगा.
बता दें कि तेल की वैश्विक मांग इस तिमाही में 30 प्रतिशत तक कम हो गई, क्योंकि लॉकडाउन्स ने जमीनी अर्थव्यवस्था को थाम कर रखा दिया.
अगर यही स्थिति जारी रहती है, तो मई 2020 तक ओक्लाहोमा और दक्षिणी कैलिफ़ोर्निया में अमेरिकी क्षमताएं पूरी तरह भर जाएंगी. स्थिति ने उत्पादकों और व्यापारियों को कम से कम अब के लिए तेल टैंकरों को फ्लोटिंग स्टोरेज यूनिट्स के लिए किराए पर देने को विवश किया है.
इससे कच्चे तेल यानि क्रूड को ले जाने वाले बहुत बड़े कैरियर्स या VLCCs के दैनिक भाड़े में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है. अब ये एक दिन का भाड़ा औसतन 240,000 अमेरिकी डॉलर पर चल रहा है. दो महीने पहले ये भाड़ा सिर्फ 25,000 अमेरिकी डॉलर था. इस घटनाक्रम ने तेल-टैंकर के शेयरों में बड़े पैमाने पर वृद्धि की है. बाजार विश्लेषकों के अनुसार, तेल टैंकर्स से जुड़ी लॉजिस्टिक्स कंपनियों के लिए भारी मुनाफा कमाने वाला वक्त चल रहा है.
यह ऐसी स्थिति भी है जो साल में आगे चलकर बदतर होने की ओर मुड़ सकती है जब चीज़ें सामान्य हो जाएंगी. विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की स्थिति का इस्तेमाल कंपनियों और व्यापारियों द्वारा कृत्रिम रूप से मांग बढ़ी दिखाने और मुनाफाखोरी के लिए भी किया जा सकता है. दुनिया भर की सरकारों और निगरानी एजेंसियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि लॉकडाउन हटाए जाने के बाद तेल के कार्टेल्स (उत्पादक संघ) ईंधन की कीमतों में खिलवाड़ न करें.
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स्टोरेज उद्देश्यों के लिए टैंकर्स का इस्तेमाल किए जाने के अलावा मौजूदा खेपों को दुनिया भर के प्रमुख बंदरगाहों से भी जोड़ा जा रहा है. इन टैंकर्स के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है कि जब तक वो खाली नहीं करा लिए जाते, वहीं बने रहें. समुद्री यातायात को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है- Covid-19 महामारी शुरू होने से पहले पहले खेप के ऑर्डर और महामारी के दौरान तेल उत्पादकों और व्यापारियों की स्टोरेज से जुड़ी खेप. तेल की खेप या तो शिपिंग बंदरगाहों पर डॉक हैं या अपनी मंजिलों तक पहुंचने के लिए रास्ते में हैं.
जहां तक चीन का सवाल है तो आने वाले तेल शिपमेंट्स की लंबी कतार है. क्योंकि चीन पहले से ही रिकवरी की राह पर हैं तो ये बैकलॉग देर-सबेर क्लियर हो जाएगा.
सिंगापुर, जो दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण शिपिंग पोर्ट हब में से एक है, पहले से ही आने वाले तेल टैंकरों का लंबा बेड़ा देख रहा है.
ये शहर कम से कम 1 जून तक पूरे लॉकडाउन में है. ईंधन की मौजूदा मांग अपेक्षाकृत कम है. साथ ही उस अनिश्चितता को नहीं भूलना चाहिए जो Covid-19 की वजह से एविएशन सेक्टर से जुड़ी है.
जब WTI क्रूड ऑयल की कीमतें 1 डॉलर प्रति बैरल पर क्रैश हो गईं थीं, तो उम्मीद थी कि ब्रेंट क्रूड भारत को फायदा पहुंचाएगा. लेकिन ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमतें WTI से ज्यादा मजबूत रहीं. फिर भी, भारत के लिए भी डिमांड-सप्लाई की पहेली सामने है. अहम राज्यों में लगातार बढ़ रहे Covid-19 केसों की संख्या के साथ, यह स्पष्ट नहीं है कि भारत कब सामान्य स्थिति में वापस आएगा. सोशल डिस्टेंसिंग के उपाय मई में जारी रहने की संभावना है. ऐसे में तेल सप्लाई की पूरी डिमांड अपने सामान्य स्तर पर निकट भविष्य में नहीं आती दिखती. घरेलू एविएशन सेक्टर अभी खुलना बाकी है और ये साफ नहीं कि ये मई में पूरी तरह खुल जाएगा.
भारतीय तेल रिफाइनरियां पहले से ही अपनी ऑनशोर कैपेसिटी को तेजी से भर रही हैं, ये रिफाइनरियां अतिरिक्त ईधन की स्टोरेज की जगह तलाशने के लिए जूझ रही हैं.
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अवसर
यह भारत के लिए अपने पेट्रोलियम रिजर्व्स को ऊंचा ले जाने का भी वक्त हो सकता है. मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में अतिरिक्त SPR (रणनीतिक पेट्रोलियम रिजर्व्स) के निर्माण के लिए ओडिशा (4.4 मिलियन टन) और कर्नाटक (2.5 मिलियन टन) में मंजूरी दी. जब पूरी तरह से ये सुविधाएं काम करने लगेंगी तो भारत 10.25 दिनों के तेल की अतिरिक्त मात्रा स्टोर कर सकेगा. वर्तमान में, भारत में लगभग 15 दिनों का तेल रखने की क्षमता है, जो 5.5 मिलियन टन बैठता है..