कोरोना वायरसबड़ी खबर

इंसान ने ही बनाया कोरोना वायरस, इस वैज्ञानिक ने किया दावा

पूरी दुनिया में कोरोना का कहर जारी है. इस जानलेवा वायरस को लेकर अमेरिका और चीन एक दूसरे पर निशाना साध रहे हैं. कौन सही है और कौन गलत. यह तय कर पाना मुश्किल है. क्योंकि इतिहास गवाह है कि ना चीन शरीफ है और ना अमेरिका दूध का धुला है. दोनों अपना उल्लू सीधा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं. लेकिन फिर भी कोरोना के राज की तह तक पहुंचना जरूरी है. सवाल लाजमी है कि ये वायरस इंसानों में पहुंचा कैसे? चमगादड़ से या चीन की वुहान लैब में काम करने वाली एक इंटर्न की गलती से?

corona virus

फ्रांस के नोबेल पुरस्कार विजेता ल्यूक मॉन्टैग्नियर का दावा यकीनन हैरान करने वाला है. मगर उनकी दलीलें सुनेंगे तो आपको इस दावे का लॉजिक भी समझ में आने लगेगा. हालांकि ये उनकी अपनी राय है. मगर ऐसे वैज्ञानिकों की बातें सुनना अहम है. जिन्हें मेडिसिन में वायरस की पहचान करने के लिए नोबेल पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. अपने तजुर्बे के आधार पर ल्यूक मॉन्टैग्नियर का मानना है कि दरअसल कोविड-19 के जीनोम में एचआईवी के एलीमेंट मिले हैं और साथ ही उसमें मलेरिया के कुछ एलीमेंट भी मिले हैं. जिससे ये साबित होता है कि कोरोना वायरस की उत्पत्ति किसी लैब में की गई है और ये इंसानों का बनाया हुआ वायरस है.

फ्रांस के सीन्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में एचआइवी के रिसर्चर और फ्रांसीसी वैज्ञानिक लूक मांटैग्नियर ने बताया कि एड्स बीमारी को फैलाने वाले एचआइवी वायरस की वैक्सीन बनाने की कोशिश में ये बेहद संक्रामक और घातक वायरस तैयार किया गया है. इसीलिए नोवल कोरोना वायरस की जीनोम में एचआइवी के तत्वों और यहां तक कि मलेरिया के भी कुछ तत्व होने की आशंका है. SARS-CoV-2 एक हेरफेर किया हुआ वायरस है, जो गलती से वुहान की लैब से जारी किया गया.

आवागमन पूरी तरह प्रतिबंधित बॉर्डर सील

ऐसा कहा जा रहा है कि वुहान लैब में चीनी वैज्ञानिक एड्स के टीके को बनाने के लिए कोरोना के वायरस का इस्तेमाल कर रहे थे. इसीलिए शुरुआती जांच में HIV RNA के टुकड़े SARS-CoV-2 जीनोम में पाये गये. हालांकि ये बात अभी तक कंफर्म नहीं हुई है. मगर इन दावों को सिरे से नकारा भी नहीं जा सकता. क्योंकि ये क्लेम वायरस पर रिसर्च करने वाले एक सीनियर साइंटिस्ट का है. डॉ ल्यूक का तो मानना है कि वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी तो ऐसे वायरस बनाने में एक्सपर्ट है और साल 2000 से ही वहां इस तरह के वायरस पर रिसर्च चल रही है.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button