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बिहार में मजदूरों पर सियासत!

पटना। कोरोना की जंग लड़ने के लिए भागीदारी के दावों के बीच बिहार में इस साल प्रस्तावित चुनाव के मद्देनजर दूसरे राज्यों में फंस राज्य के प्रवासी मजदूरों की वापसी को लेकर सियासत शुरू हो गई है। कोरोना संकट के बीच रोजी रोजगार के लिए अन्य राज्यों में फंसे मजदूरों को वापस लाने की मांग को लेकर सभी दल खुद को उनके सबसे बड़े शुभचिंतक साबित करने में लगे हैं।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रारंभ से लॉकडाउन के नियमों का हवाला देते हुए अन्य राज्यों में फंसे मजदूरों को अन्य राज्यों में ही सुविधा देने की वकालत करते रहे है। इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुख्यमंत्रियों की हुई वीडियो कांफ्रेंसिंग में भी नीतीश ने इस मुद्दे को जोरदार तरीके से रखते हुए नियमों में बिना संशोधन के प्रवासी मजदूरों को लाने में असमर्थता जताई। इसके बाद केंद्र सरकार ने दूसरे राज्यों में फंसे लोगों को लाने की इजाजत दी है।

नई गाइडलाइंस में बसों के जरिए लोगों को लाने की छूट है, लेकिन इन्हीं बसों को लेकर बिहार में सियासत हो रही है। नीतीश सरकार विशेष ट्रेन चलाने की मांग कर रहे हैं तो विपक्ष के नेता अपनी तरफ से बस देने का ऐलान कर रहे हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो सरकार को अब तक कुल 27 लाख लोगों ने मुख्यमंत्री से सहायता के लिए आवेदन किया है, जिसमें दिल्ली से ही पांच लाख लोग हैं।

बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी कहते हैं, “जितनी बड़ी संख्या में लोग चेन्नई में, बेंगलुरू में, मुंबई में रुके हुए हैं, उन्हें बसों से लाना संभव नहीं है। एक एक बस को छह से सात दिन लग जाएंगे। इसलिए मैं भारत सरकार से अपील करना चाहूंगा कि विशेष ट्रेनों की व्यवस्था की जाए। क्योंकि बिना स्पेशन ट्रेन की व्यवस्था के बसों से लाना संभव नहीं होगा। इसमें एक महीने लग जाएगा।”

सरकार द्वारा ट्रेनों की मांग पर मुख्य विपक्षी पार्टी राजद के नेता तेजस्वी यादव ने 2000 बसें देने की घोषणा कर दी। तेजस्वी ने ट्वीट कर लिखा, “हम सरकार को 2000 बसें देने को तैयार हैं। सरकार नोडल और प्रशासनिक अधिकारियों की निगरानी में इन बसों का प्रयोग कर सकती है। बसें पटना में कब भेजनी है, बताया जाए।”

उन्होंने शुक्रवार को कहा, “झारखंड के मजदूर तेलंगाना से विशेष ट्रेन से झारखंड लाए जा रहे हैं। क्या आप भाजपा के पिछलग्गू ही बने रहेंगे या बिहार हित में अपनी अंतरात्मा, ताकत व अनुभव का भी कुछ फायदा उठाएंगे? आप तो रेल मंत्री भी रहे हैं। केंद्र और राज्य में आपकी दमदार सरकारें हैं।”

इस बीच जन अधिकार पार्टी के अध्यक्ष पप्पू यादव ने सियासी दांव चलते हुए राजस्थान के कोटा में 30 बसें भेजने का दावा कर दिया। उन्होंने ट्वीट किया, “बिहार सरकार के पास पैसा नहीं है। मैं तन-मन-धन से हर बिहारी को बिहार वापस लाने को प्रतिबद्घ हूं। कोटा से छात्रों को लाने हेतु वहां 30 बसें भेज दी है।”

कांग्रेस ने भी मजदूरों और छात्रों को वापस लाने पर जोर दिया है। युवा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ललन कुमार ने कहा कि “इस संकट के दौर में राजनीति नहीं होनी चाहिए। बाहर फंसे मजदूर और छात्र बिहार के ही लोग हैं। कांग्रेस पार्टी उनकी सकुशल वापसी की मांग कर रही है।” उन्होंने कहा, “झारखंड के लिए ट्रेन चल पड़ी हैदराबाद से तो बिहार के लिए ट्रेन क्यों नही? बिहार के छात्रों, श्रमिकों के साथ भेदभाव क्यों?”

हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के प्रवक्ता दानिश रिजवान ने कहा कि “सरकार लिस्ट दे हम बिहारी छात्र, मजदूरों के लिए व्यवस्था करेंगें। गरीबों की मदद नहीं कर पाएंगे तो ऐसी राजनीति को लानत है।” उन्होंने कहा कि पार्टी 500 बसें देगी। जद(यू) के नेता और सूचना जनसंपर्क मंत्री नीरज कुमार ने कहा, “प्रवासियों को वापस लाने के लिए नोडल अफसरों की नियुक्ति की गई है।

प्रवासियों को सुरक्षित लाने के लिए सरकार पूरी प्लानिंग कर रही है। नीतीश कुमार गहरा विश्लेषण करते हैं और उसके बाद ही कार्यनीति तय होती है।” तेजस्वी के बयान पर उन्होंने कहा कि उन्होंने गरीबों, मजदूरों और किसानों को नौकरी के नाम पर जमीन लिखवा लिए हैं, उसे दान कर देना चाहिए।

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