मजदूरों के टिकट का भार सत्ता पक्ष पर भारी

लाॅकडाउन के प्रारम्भ होते ही कई तस्वीर देखने को मिल रही हैं। कभी ग्रीन, रेड और औरंज तो कभी शराब के लिए मारा मारी। अब एक नया रंग राजनीति का भी सामने आ रहा है। 3 मई को महाराष्ट्र से चलने वाली श्रमिक स्पेशल ट्रेन जो लाॅकडाउन में फंसे मजदूरों को अपने घर पहुॅचाने के लिए चलायी गयी थी। उसमें मजदूरों से लिए गये टिकट पर पक्ष और विपक्ष आमने सामने आ गये हैं। इस मुददे को लेकर कई खबरें न्यूज चैनल और अखबारों के माध्यम से पढ़ने और देखने को मिली जिसमें जनता के मत भी चक्की के दो पाटों में विभाजित हो गये और मजदुरों के भविष्य का असली मुददा पिसता नजर आया।
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विपक्ष ने आरोप लगाया की मजदूरों से उस समय टिकट के पैसे लिए गये जिस समय उनके खाने के लाले पड़े हुए थे। यहाॅ मैं आपको ये बता दू की यह राशि 700 से 900 के बीच थी जो कि मजदूरों की एक दिन की मजदूरी से भी ज्यादा है। इस पर सत्ता पक्ष ने जवाब दिया की टिकट का 85 प्रतिशत केन्द्र सरकार और 15 प्रतिशत राज्य सरकार अदा करेगी। अब प्रश्न ये उठता है की ये पहले से निर्धारित था तो टिकट काटे ही क्यों गये और काटे गये तो मजदूरों को क्यों दीये गये, ये सीधे राज्य सरकार को भी दिये जा सकते थे।
इस पर रेलवे का कहना था कि लाॅकडाउन की वजह से और सोशल डिस्टेंसिंग के कारण यात्रियों की संख्या में कमी आयी है जिससे रेलवे पर अतिरिक्त आर्थिक भार है। इस पर मेरा ये कहना है की हमारे देश के गणमान्य व्यक्तियों ने जो लाखों करोड़ो का दान पीएम केयर में दिया था। उस राशि से इन टिकटों को खरीदा जा सकता था, और तो और जितना खर्चा सरकार ने हमारे डाॅक्टरो के सम्मान में पुष्प बरसाने में किया शायद उतनी राशि में मजदूरों के टिकट का खर्चा तो उठाया ही जा सकता था। इससे बड़ी सेवा और सम्मान की बात और क्या हो सकती थी।
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उधर बिहार वापस लौट रहे मजदुरों पर बिहार के मुख्यमंत्री का कहना था कि जो भी मजदूर वापस आएगें उन्हें क्वारंटाइन रखा जाएगा और जब वो घर जाएगें तब सभी को 500 की राशि दी जाएगी। वो मजदूर जो महाराष्ट्र से लखनऊ आ रहे थे उनसे भी तहसीलदार ने 555 की राशि टिकट के नाम पर ली और जब सवाल किया गया तो जवाब मिला की रेलवे ने कहा है इसलिए ये राशि ली जा रही है, और तो और मजदूरों की जाॅच की प्रक्रिया इतनी जटिल कर दी गयी की वह एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल का चक्कर ही लगाते रहे। इन सब से हारकर मजदूर निकल पड़े पैदल ही अपने घरों को। इस मुददे पर सत्ता पक्ष तो शक के घेरे में है। इससे क्या फर्क पड़ता है की सरकार बाद में मजदूरों के खातों को भर दे। अब देखने वाली बात ये होगी के मजदूरो के नाम का कटा ये टिकट किस पर भारी पड़ेगा।