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पत्रकार संगठनों द्वारा भ्रामक प्रचार!

नरेश दीक्षित – अध्यक्ष राष्ट्रीय पत्रकार एसोसिएशन


कांग्रेस ने तो कभी मीडिया मुक्त भारत की बात नहीं की है, देश के कुछ मीडिया संगठन सोनिया गांधी की बात को वे वजह तूल दे रहे हैं, कि उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर समाचार पत्रों को विज्ञापन देने के लिए रोकने को कहा है। आप ही बताइए 2016 में नई विज्ञापन पालिसी कोन लाया था, समाचार पत्रों की ग्रेडिंग किसने की थी,समाचार पत्रों को जी एस टी के दायरे में कौन लाया था ? क्या यह सच नहीं है सरकार ने 20 हजार करोड़ रूपये का विज्ञापन उन चाटुकार मीडिया को नहीं मिला जो सरकार का चरण चुम्मन करते हैं?

क्या आप बता सकते हैं 15 अगस्त, 26 जनवरी, 2 अक्तूबर जैसे राष्ट्रीय महापर्वो पर विज्ञापन किसने लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों को देने से रोका? क्या संसद में यह बिल पास नहीं हुआ प्रिंटिंग प्रेस अनिवार्यता के लिए जो अभी राज्य सभा में पेडिंग है। यह सब वर्तमान सरकार ही कर रही हैं? फिर दोष सोनिया गाँधी के एक मात्र पत्र पर पत्रकार संगठन परेशान क्यों? सिर्फ सरकार की सस्ती चाटुकारिता के लिए? देश में कोरोना संक्रमण से आई वैश्विक महामारी से बचाने के लिए सोनिया गाँधी ने विज्ञापन पर खर्च हो रहे करोड़ों रुपये को बचा कर कोरोना महामारी पर खर्च करने के लिए कहा है न कि हमेशा के लिए विज्ञापन पर खर्च हो रहे धन को रोकने के लिए कहा है।

क्या यह सुझाव सोनिया का मोदी मान लेंगे? इसकी कौन गारंटी लेगा? इसका वही पत्रकार संगठन विरोध कर रहे हैं जिनके संगठन के 10% समाचार पत्रों को तो विज्ञापन मिल रहे हैं लेकिन देश के 90% लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों को डीएवीपी से विज्ञापन नहीं मिल रहें हैं क्या इसके विषय में ऐसे संगठन कभी सोचते हैं? मेरे विचार से सोनिया गाँधी के पत्र पर पत्रकारों को निर्थक शोर नहीं मचाना चाहिए। अतः मेरा संगठन राष्ट्रीय पत्रकार एसोसिएशन राष्ट्रहित में मांग करता है कि कोरोना संक्रमण से राष्ट्र को बचाने के लिए यदि धन की आवश्यकता है तो टीवी चैनलों,प्रिंट मीडिया इत्यादि के विज्ञापन जनहित में संक्रमण समाप्त होने तक रोक देना चाहिए?

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