पीजीआई ने खोजा नेफ्रोटिक सिंड्रोम में स्टेरॉयड का असर बताने वाला बायोमार्कर

- यह संभव हुआ आईसीएमआर के एक अध्ययन से
- बायो मार्कर को आस्ट्रेलिया से मिला पेटेंट
लखनऊ। गुर्दे की बीमारी नेफ्रोटिक सिंड्रोम से पीड़ित वयस्क और बच्चों में स्टेरायड दवाओं के दुष्प्रभाव व यह कारगर हैं कि नहीं, इसका पता लगाने के लिए पीजीआई के नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. नारायण प्रसाद ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की मदद से किये गए अध्ययन में दो बायो मार्कर खोजें हैं। इनके नाम पीजीपी और एमआरपी- वन हैं। इसकी मदद से खून की कोशिकाओं का अध्ययन किया जाता है। यह अध्ययन प्रकृति पत्रिका, फार्माकोजेनोमिक्स में प्रकाशित हुआ था। आस्ट्रेलिया सरकार ने आठ वर्ष के लिए इसे पेटेंट दे दिया है। यह 16 अगस्त 2021 से लागू हो गया है। पीजीआई निदेशक डॉ. आरके धीमन ने इस शोध को सराहा है।
करीब 20 फीसदी में स्टेरायड बेअसर हो जाती हैं
डॉ. नारायण प्रसाद बताते हैं नेफ्रोटिक सिंड्रोम में मरीजों को स्टेरॉयड दी जाती हैं। बच्चे के पेशाब में भारी मात्रा में प्रोटीन की कमी हो जाती है। शरीर में सूजन आ जाती है। धीरे-धीरे गुर्दे खराब होने लगते हैं। कुछ समय बाद डायलिसिस और गुर्दा प्रत्यारोपण तक की नौबत आ जाती है। लगभग 10-20% बच्चों में स्टेरॉयड प्रभावी नही हैं। कई मरीज़ प्रारंभिक प्रतिक्रिया के बाद स्टेरॉयड प्रतिरोध विकसित करते हैं। पीजीपी और एमआरपी-1 लिम्फोसाइट स्टेरॉयड को अंदर की कोशिकाओं से बाहर की ओर प्रवाहित करती हैं। स्टेरायड को काम नहीं करने देती हैं। यह बेअसर होने लगती हैं। करीब 20 फीसदी तक बच्चे रेस्पांस नहीं करते। बावजूद डॉक्टर उन्हें बार-बार स्टेरॉयड देते रहते हैं। इससे उसमें स्टेरॉयड की विषाक्तता हो जाती है। इससे बच्चे का विकास रुक जाता है। इन मरीजों को दूसरी दवाएं दी जाती हैं।
यह हैं दुष्प्रभाव
स्टेरॉयड उपयोगी दवा होने के साथ इसके नुकसान भी कई हैं। इसके प्रतिरोध से शरीर का विकास रुक जाता है। इसमें हड्डियां कमजोर, डायबिटीज, मोतियाबिंद समेत कई समस्याएं हो जाती हैं।