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कोरोना से बचने का संदेश लेकिन सड़क पर महापुरुष की पेंटिंग कितनी जायज? क्या ये महापुरुषों का अपमान नही?

लखनऊ। विगत कुछ दिनों से धर्मनगरी चित्रकूट में पेंटिंग की कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया में वायरल हो रही हैं जिसे लेकर पक्ष विपक्ष में खूब चर्चाएं हो रही हैं । जानकारी के अनुसार , ये पेंटिंग कलाकारों द्वारा कोरोना के प्रति आम लोगो मे जागरूकता बढ़ाने हेतु बनाई गई हैं । लेकिन मेरा प्रश्न उन सम्मानित लोगो से है जो वहां मौजूद थे कि आखिर जागरूकता बढ़ाने हेतु किसी महापुरुष का प्रतीकात्मक चित्र सड़क के बीचोबीच बनाने की क्या जरूरत ? इन्ही चित्रों के ऊपर लोग गुजरेंगे , गाड़ियां गुजरेंगी और देश का भविष्य भी गुजरेगा।

प्रश्न ये है कि क्या ऐसी ही शुरुआत होगी महापुरुषों के अपमान की ? कल को महात्मा गांधी ,भीमराव अंबेडकर और फिर महाराणा प्रताप जैसे महापुरुषों की पेंटिंग बनाई जाएंगी क्योंकि वो भी समाज के लिए प्रेरणा थे, क्या ये हम सब को शोभा देता है? कोरोना से सावधान रहने के लिए हम धीरे धीरे जागरूक हो रहे हैं और रही बात पेंटिंग्स के माध्यम से समझाने की तो भइया और स्थानो पर देख लीजिए जरा कैसे सहज ,सरल और व्यवहारिक ढंग से पेंटिंग्स बनाकर समझाने का प्रयास किया जा रहा है। जिन कलाकारों ने ये पेंटिंग बनाई है वो तो साक्षात देव हैं जिनके अंदर इतनी अद्भुत प्रतिभा है चित्रकारी की लेकिन उन्हें भी सोचना चाहिए था।

बहरहाल, गलती उनकी है जिनकी देखरेख में ये चित्रकारी हुई? गलती उनकी भी है जिन्हें समाज की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई है । वैसे भी महापुरुषों की शोभा विशेष दिवसों तक सीमित रह गई है लेकिन पढा लिखे समाज और खास भगवान राम की कर्मस्थली में महापुरुषों का ऐसा अपमान होगा, ये नही सोंचा था। दुख अधिक इसलिए हो रहा है क्योंकि ये उन्ही भगवान राम की कर्मस्थली है जो खुद एक उच्च कोटि के पितृभक्त थे और उन्ही के समान पितृभक्ति के जीवंत उदाहरण श्रवण कुमार का ऐसा अपमान उचित नही।

प्रशासन से निवेदन है कि तत्काल इस पेंटिंग को हटाकर इसके स्थान पर एक सुंदर सा, सरल सा कोरोना से बचने वाले सन्देश का चित्रांकन करवाइये —

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