भारत-बनाम-इंडिया

लोकेश त्रिपाठी अमेठी-
दुनिया का सबसे सशक्त लोकतांत्रिक देश भारत अपनी अनोखी छवि के लिए प्रख्यात है| यहाँ के वेद, उपनिषद, पुराण, गीता, रामायण एवं मानस आदि सद ग्रन्थ एक ऐसे अक्षय शब्द भंडार हैं, जिन ग्रंथों के माध्यम से भारत को जाना जा सकता है| अग्नि (ऋग्वेद), वायु (यजुर्वेद), आदित्य (सामवेद), अंगिरा (अथर्ववेद) आदि वेद द्रष्टा ऋषियों के साथ भगवान शिव, पुरुषोत्तम श्रीराम, योगिराज श्रीकृष्ण तथा वशिष्ठ, विश्वामित्र, बाल्मीकि, महर्षि व्यास, कबीर, सूर, तुलसी आदि जिनका आलोक सारी दुनिया में व्याप्त है| वाराहमिहिर जैसा गणितज्ञ, चरक जैसा आयुर्वेदाचार्य तथा पतंजलि जैसा योग ज्ञानी आज तक दुनिया में कोई नहीं हुआ| इनके द्वारा किए गए अन्वेषणों को लेकर सारी दुनिया के लोग शोध कार्य में संलग्न हैं| वर्तमान में गांधी दर्शन सारी दुनिया में सर्वोपरि है| दुनिया के नक़्शे पर भारत एक अनूठा देश है, जिसके शीर्ष पर देश का मुकुट देवतात्मा पर्वतराज हिमालय, वक्षस्थल पर गंगा-यमुना पवित्र नदियाँ तथा दक्षिण में चरण पखारता अगाध समुद्र हिन्द प्रकृति के उपहार हैं, जो अपनी अनुपम छटा के लिए प्रसिद्ध हैं| ऐसी अवस्थिति वाला देश दुनिया के खाके में दूसरा नहीं है| यहाँ के संस्कार एवं संस्कृति की चर्चा सर्वत्र है| वसुधैव कुटुंबकम् की संकल्पना भारतीय दर्शन की देन है| हमें भारतीय होने का गर्व है|
धरा के कालखंड में देश में कितने उतार-चढ़ाव आए| अनेक उथल-पुथल हुए| साम्राज्यों के उत्थान-पतन को भी देखा| विदेशी आक्रान्ता ग्रीक, सीथियन, शक, हूण, कुषाण, मंगोल भारत में आये| अंततः वे भारत में ही समाहित हो गए| यहीं के बनकर रह गए| मुगलों एवं ब्रितानी हुकूमत ने यहाँ की संस्कृति को नष्ट-भ्रष्ट करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी| यहाँ पुराने विचार, पुरानी मान्यताएं एवं पुरानी संस्कृति आज भी बरकरार है| हमारी प्राच्य संस्कृति, आध्यात्मिक सोंच को धरोहर के रूप में आज भी संजोए हुए है| पाश्चात्य भौतिकवाद भारतीय दर्शन को समूल नष्ट न कर सका| कुछ बात तो अवश्य है कि भारत की हस्ती बरकरार है|
ऋषियों-मुनियों का देश भारत का इतिहास पुराना है| अतः भारत के एतिहासिक उद्भव पर दृष्टि डालना आवश्यक है, इसके लिए यात्रा-वृत्तांतों एवं जातक कथाओं का भी सहारा लिया जा सकता है| वर्तमान दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं है, जहां भारत के लोग न हों और वे भारत का झंडा लहरा रहे हों| पौराणिक आख्यानों के आधार पर वसुंधरा को सप्तद्वीपों (जम्बू, प्लक्ष, शालमन, कुश, क्रौंच, शाक, पुष्कर) में विभाजित किया गया था, उनमें से जम्बूद्वीप की चर्चा आज भी भारतीय संस्कारों में पूजा के समय ऋषियों का संकल्प ‘वैवश्वत मन्वन्तरे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखंडे आर्यावर्तान्तर्गतैकदेशे..…’ का वाचन होता है|
भारतवर्ष मूलतः ऋषियों का देश है| आर्य प्रतिभाएं साक्षी हैं कि श्वेत वाराह्कल्प की सृष्टि के आदि मानव मनु के पुत्र प्रियव्रत के पुत्र आग्नीध्र के पुत्र नाभि के पुत्र ऋषभ के समय तक जिस भूखंड का नाम ‘अजनाभवर्ष’ था| ऋषभनन्द भरत के समय उसका नाम भारतवर्ष हो गया| ‘अजनाभंनामैतद्वर्ष भरतमिति यत्आरभ्य व्यपदिषन्ति (भागवत पुराण, 5, 7, 3) भरत ने अजनाभवर्ष में भा (प्रकाश) की खोज में रत् (तल्लीन) ऋषियों के आर्षखंड (भूभाग) भा+रत कर दिया| तभी से अब तक अजनाभवर्ष भारतवर्ष के नाम से प्रसिद्ध रहा| विष्णुपुराण (2, 1, 31, 32), वायुपुराण (30, 52), लिंग पुराण (47, 23), ब्रह्माण्ड पुराण (14, 5, 62), अग्निपुराण (160, 11, 12), स्कन्दपुराण (37, 57), मार्कंडेय पुराण (50, 41) आदि के साक्ष्य इस कथन की पुष्टि करते हैं|
सुदूर अतीत से चले आ रहे भारतवासियों के समक्ष ब्रिटिशकालीन परतंत्रता के समय की गई मौन स्वीकृति आज स्वतंत्र भारत में आस्थामयी दृढ़ मान्यता बनकर भयावह होती जा रही है| हमारा संकल्प जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखंडे…… है और विकल्प में इंडिया हो गया| हमारे संविधान में India that is Bharat अंकित किया जाना भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात है| कौन सी ऐसी मजबूरी रही कि भारतीय संविधान निर्माताओं के द्वारा भारत के पहले इंडिया शब्द का प्रयोग करना पड़ा? भारत से अंग्रेजों के चले जाने के बाद भी बहुसंख्यक भारतीयों द्वारा इंडिया लिखा या पढ़ा जाना चिंता का विषय है|
द्वीप विभाजन के आधार पर किये गए पृथ्वी के विभाजन काल से आज तक जिस भूखंड का नाम भारत था, तब इसके इंडिया नामकरण की आवश्यकता क्यों पड़ी? यह एक विचारणीय प्रश्न है| दुनिया के सभी देशों के एक नाम हैं तो भारत के हिन्दुस्तान एवं इंडिया नामकरण का औचित्य क्या था? यदि रोमन लिपि में आसानी से भारत (BHARAT) सुविधापूर्वक लिखा जा सकता था| तो क्यों परिवर्तन कर दिया गया? विश्व के सभी देश अमेरिका, अफ्रीका, इंडोनेशिया, आस्ट्रेलिया, ब्राजील, चीन, जापान आदि का नाम रोमन लिपि में भी वही है जो उनका मूल नाम है तो भारत का नाम बदलकर इंडिया लिखा जाना न्यायसंगत नहीं है| सिन्धु नदी (सिंध प्रांत, पाकिस्तान) जिसे प्राचीन ग्रीक इंडस कहते थे| ईरानियों द्वारा सिन्धु को हिंदु और यहीं के रहने वालों को हिन्दुस्तानी कहा गया| इस तरह मुगलों द्वारा भारत के नगरों का नाम बदला जाना तथा अंग्रेजों द्वारा भारत का नाम बदला जाना एक साजिश है| एक समय ब्रिटिश हुकूमत का आधिपत्य दुनिया के तमाम देशों पर रहा और उन देशों के नामों में परिवर्तन न करके केवल भारत का नाम बदला जाना दुर्भाग्यपूर्ण रहा|
भारत का इंडिया नामकरण अंग्रेजों ने किया| इंडिया से मिलते-जुलते अंग्रेजी शब्दों के अर्थों को देखा जाए तो बहुत हल्केपन, दयनीय एवं गर्हित दशा को दर्शाने वाले हैं| क्या इन्हीं मिलते-जुलते शब्दों के अर्थों की भावनाओं के आधार पर अंग्रेजों ने भारत का नाम रोमन लिपि में इंडिया रख दिया| कहाँ का न्याय था? अंग्रेजी के शब्दों में INDIA के प्रारम्भ के चार अक्षर INDI है और बाद में A अक्षर न होकर अन्य अक्षर जैसे- INDICT (अपराध या दोष लगाना), INDIGENECE (अति दरिद्रता), INDIGESTIBLE (न पचने योग्य), INDIGNANT (कुपित या रोषयुक्त), INDIGNITY (अनादर/अशिष्ट), INDIRECT (कुटिल/टेढ़ा-मेढ़ा) इससे साफ़ जाहिर होता है कि भारत का नाम इंडिया बदला जाना उनकी घृणित मानसिकता का सूचक रहा| लार्ड मैकाले ने भारत की शिक्षा प्रणाली में न केवल परिवर्तन किया साथ ही नालंदा एवं तक्षशिला विश्वविद्यालयों में रखे भारतीय प्राच्य दर्शन के साहित्य को जलवा भी दिया, शेष बचे साहित्य को मैक्समूलर द्वारा ले जाया गया| जो आज भी ब्रिटेन और जर्मनी की लाइब्रेरी में उपलब्ध हैं|
भारत-भारतीयता-भारतीय संस्कृति हमारी पहचान है| यहाँ का प्राच्य दर्शन भारत की अस्मिता की रक्षा करता है| उद्दाम भोगवाद पाश्चात्य सस्कृति की देन है| जो अमन-सुख-शान्ति एवं लोक कल्याण की भावना पर गहरा प्रहार करता है| आवश्यकता इस बात की है कि भारत के जनमानस द्वारा समवेत प्रयास किया जाना चाहिए| अनावश्यक का त्यागकर आवश्यकता का वरण करने हेतु संकल्प लें कि अंग्रेजों द्वारा रखा गया इंडिया नाम हमें स्वीकार नहीं है| अतः हमारा नारा होना चाहिए कि “भारत बचाओ और इंडिया हटाओ| सोच बदल दो, नाम बदल दो|” खेद है कि अंग्रेजो के भारत में रहने पर अंग्रेजियत का उतना प्रभाव नहीं पड़ा जितना कि आज देखने को मिलता है| यह देश के लिए शुभ संकेत नहीं है| एतदर्थ भारत परिवार के समस्त देशप्रेमियों का राष्ट्र चेतना परिषद् भारत आह्वान करता है कि इस मुहिम में आगे आयें जिससे भारत-भारतीयता एवं भारतीय संस्कृति को बचाया जा सके|