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कृषि कानूनों की वापसी के बाद आंदोलन में शामिल किसान लौटना चाहते हैं घर, संयुक्त किसान मोर्चा के फैसले का इंतजार

कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली से सटे सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसानों ने कहा कि वे अब घर जाना चाहते हैं, लेकिन उन्हें संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) की बुधवार को बैठक के फैसले का इंतजार है. किसानों ने कहा कि उनकी मुख्य मांगें मान ली गई हैं और वे खुश हैं. आंदोलन स्थल पर कुछ किसानों ने कहा कि वे अपने घर, अपने खेत और अपने बच्चों के पास वापस जाना चाहते हैं.

किसानों ने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर किसान मोर्चों के फैसले के इंतजार है, अगर मोर्चा कहेगा कि बैठना है तो आगे भी आंदोलन जारी रहेगा. किसान आंदोलन के एक साल पूरा होने के मौके पर पंजाब-हरियाणा से कई किसान 26 नवंबर को आंदोलन स्थल पर आए थे जो वापस चले गए हैं, लेकिन जो पिछले एक साल से यहां थे, वो अभी भी बैठे हैं.

हालांकि भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि जब तक भारत सरकार बात नहीं करेगी तब आंदोलन जारी रहेगा, बातचीत हो, मुकदमे वापस हों. उन्होने कहा, “पहले भी मुकदमे खत्म होते थे, किसान इन मुकदमों को गले में डालकर नहीं जाएंगे. सबसे ज्यादा हरियाणा के लोगों पर मुकदमे हैं, मुकदमे के तक समाधान तक बॉर्डर ही हमारा घर है. सरकार अफवाह फैलाकर पब्लिक को भिड़ाने की कोशिश कर रही है, अगर कोई घटना होती है तो जिम्मेदार सरकार होगी.”

क्या हैं किसानों की अन्य मांगें

संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन सोमवार को दोनों सदनों ने कृषि कानून निरसन विधेयक पारित कर दिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर को तीनों विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले की घोषणा की थी. एसकेएम ने आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों के परिजन को मुआवजा देने सहित कई और मांग भी रखी हैं.

हाल ही में संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा था कि जब तक सरकार उनकी छह मांगों पर वार्ता बहाल नहीं करती, तब तक आंदोलन जारी रहेगा. मोर्चा ने छह मांगें रखीं, जिनमें एमएसपी को सभी कृषि उपज के लिए किसानों का कानूनी अधिकार बनाने, लखीमपुर खीरी घटना के संबंध में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा को बर्खास्त करने और उनकी गिरफ्तारी के अलावा किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेने और आंदोलन के दौरान जान गंवाने वालों के लिए स्मारक का निर्माण शामिल है.

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