देशबड़ी खबर

सेना को सौंपे गए अगली पीढ़ी के स्वदेशी युद्धक टैंक, आर्मी चीफ एमएम नरवणे बोले- ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में है महत्वपूर्ण कदम

सेना को सौंपे गए अगली पीढ़ी के स्वदेशी युद्धक टैंक, आर्मी चीफ एमएम नरवणे बोले- ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में है महत्वपूर्ण कदम. भारतीय सेना को स्वदेशी रूप से विकसित अगली पीढ़ी के युद्धक टैंक व अन्य उपकरणों की पहली खेप मिल गई है. सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने पुणे में इन टैंकों को सेना के बेड़े में शामिल किया. इस बीच सेना के अधिकारी ने कहा है कि यह सिस्टम भारतीय सेना की मौजूदा इंजीनियर टोही क्षमताओं को बढ़ाएगा और भविष्य के संघर्षों में मकेनाइज्ड ऑपरेशन को सपोर्ट करने में एक प्रमुख गेम-चेंजर साबित होगा.

लेफ्टिनेंट जनरल हरपाल सिंह ने कहा कि बख्तरबंद इंजीनियर टोही वाहन पूरी तरह से देश के भीतर डिजाइन और विकसित किए गए हैं. ये टैंक की गति से मेल खाते हैं और पश्चिमी मोर्चे पर मकेनाइज्ड ऑपरेशन करने में मदद करते हैं. इन टैंकों को कॉर्प्स ऑफ इंजीनियर में शामिल किया गया है. कॉर्प्स ऑफ इंजीनियर का काम युद्ध के दौरान कॉम्बेट इंजीनियर पुल, ट्रैक और हेलीपैड बनाकर अपनी सेवाओं को गतिशीलता प्रदान करना है. इसके अलावा यह बारूदी सुरंगे बिछाकर और पुलों को ध्वस्त कर दुश्मनों के मंसूबों पर पानी फेरता है. कॉर्प्स ऑफ इंजीनियर के चार प्रमुख अंग हैं, जिसमें कॉम्बैट इंजीनियर्स, एम ई एस, बार्डर रोड्स और सैन्य सर्वेक्षण शामिल हैं.

इस बीच सेना प्रमुख नरवणे ने कहा, ‘इन स्वदेशी उपकरणों (एईआरवी) को शामिल करने से विशेष रूप से पश्चिमी मोर्चे पर ऑपरेशन को बढ़ावा मिलेगा और रक्षा उपकरणों के निर्माण में ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा.’ भारत ने पिछले कुछ सालों में कई रक्षा उपकरणों को आयात नहीं करने का फैसला किया और इसे स्वदेशी तकनीक से बनाने का फैसला किया है.

‘पिछले 7 सालों में 38 हजार करोड़ का किया निर्यात’

अभी हाल ही में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बताया था कि भारत ने पिछले 7 सालों में 38 हजार करोड़ से अधिक के रक्षा सामानों का निर्यात किया है और देश जल्द ही शुद्ध निर्यातक बन जाएगा. अभी हाल ही में रक्षामंत्री ने रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) की ओर से विकसित उत्पाद सशस्त्र बलों और अन्य सुरक्षा एजेंसियों को सौंपे थे. उन्होंने सात सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कंपनियों को छह प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (टीओटी) समझौते भी सौंपे थे.

इस दौरान उन्होंने कहा था कि पिछले कुछ वर्षों में डीआरडीओ के दृष्टिकोण में एक बड़ा बदलाव आया है जिससे यह न सिर्फ मौजूदा खतरों की गंभीरता को कम करने वाली प्रौद्योगिकी पर काम कर रहा है बल्कि भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए अपनी तरह की पहली प्रौद्योगिकी विकसित करने में भी जुटा है. भारत को रक्षा विनिर्माण आधार और शुद्ध रक्षा निर्यातक का एक मजबूत प्लेटफॉर्म बनाने के मकसद को लेकर डीआरडीओ ने इस प्रयास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

Related Articles

Back to top button