उत्तर प्रदेशसुलतानपुर

धरती पर जिनका हृदय वह चित्त सुंदर है वही सुदामा है: आचार्य धर्मेंद्र शास्त्री

  • श्रीमद् भागवत कथा पुराण का सातवां दिन

सुल्तानपुर। जिसका हृदय व चित्त निर्विकार हो सुंदर हो नेक हो वह व्यक्ति सुदामा ही हो सकता है। जो सुदामा है उसकी पत्नी सुशीला ही हो सकती है। सुदामा का अर्थ है सुंदर हृदय वाला व्यक्ति । कलियुग में उपासना पद्धति दो प्रकार की होती है पहली निष्काम व दूसरी साकाम। निष्काम उपासना में ईष्ट से भक्तों कुछ नहीं मांगते वही सकाम उपासना में ईश्वर से याचना की जाती है। उक्त बातें शहर के दरियापुर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिन कथा व्यास आचार्य धर्मेंद्र शास्त्री ने कही।

कथा के सातवें दिन सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा द्वापर में विप्र सुदामा की पत्नी सुशीला ने सुदामा जी से कहा स्वामी सुना है श्रीमन नारायण जगन्नाथ जगदीश श्री कृष्ण जी आपके मित्र हैं और वह अपने बाल सखा मित्रों की बड़ी सेवा व मदद करते हैं। सुदामा जी का हृदय यह सवाल सुनकर गदगद हो गया भाव विभोर आंखों से आंसू बहने लगे और उन्होंने कहा देवी वह हमारे बाल सखा है लेकिन आज वह द्वारिकाधीश है।

सुशीला ने कहा जब आपके बाल सखा है तो आप की परेशानी दूर कर देंगे तब सुदामा ने जवाब दिया कि देवी आज तक मैंने हमेशा दान दिया है कभी दान नहीं लिया। जो लोग पूरे विश्व में ज्ञान का दान करते हैं उनसे बड़ा दानी धरती पर नहीं है मैंने हमेशा प्राणियों को ज्ञान दान किया है। यहां सुशीला सकाम उपासना आचार्य है वह जानती है सुदामा जब ठाकुर जी के पास जाएंगे तो ठाकुर जी सुदामा की सारी व्यवस्था ठीक कर देंगे। सुशीला के याचना के बाद सुदामा जी द्वारिका जाने को तैयार हुए।

यहां आचार्य श्री ने परीक्षित मोक्ष का वर्णन करते करते हुए आरती के साथ में श्रीमद् भागवत कथा का समापन किया। यहां मुख्य यजमान आनंद प्रकाश शुक्ला, अयोध्या प्रसाद शुक्ला, वेद प्रकाश, कैलाशनाथ, शक्ति प्रसाद तिवारी, संतोष तिवारी , बिंद्रा प्रकाश उपाध्याय, हरिमूर्ति पांडे , नानक चंद गुप्ता, भवानी प्रसाद सिंह, मैथिली शरण पांडे , धर्मराज यादव, यज्ञ नारायण, आचार्य बृजेश शास्त्री, ओमप्रकाश तिवारी समेत सैकड़ों लोग मौजूद रहे।

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